ज्ञानत‌त्व : : अंहकार


होली उत्सव 2020 के मन‌न कार्यक्रम के समय, एकांत मन ने प्रश्न किया ? क्या होली दहन की बजाय अहंकार दहन हो सकता है ?? जब कि अहंकार दहन से खुशियाँ होंगी , बरबादी नहीं ।


[ ] अहंकार अनेक झगड़ों की जड़ है । 
[ ] अहंकार का एक ज़िद्दी रुपी जिन्न है ।
[ ] अहंकारी , अहंकार को अपना रुतुवा समझता है ।
[ ] नम्रता , अहंकार को नष्ट करता है । 



अंहकारी व्यक्ति दूसरों पर आंतक करता है । उन्हें अपने से बहुत घटिया मानकर उनसे दुर्व्यवहार करता है । अपने रोब तले दबाए रखता है । त‌था अपमानित करता है । 


अहंकारी दूसरे के मन को ठेस पहुंचा कर उन्हें अपने विरुद्ध कर लेता है । त‌था विद्रोह करने पर मजबूर कर देता है । लेकिन अंहकार के नशे में स्वंय को महान समझता है ।


अहंकारी मिथ्या अभियान में मानसिक संतुलन खो बैठ‌ता है । और अपने को सही सच्चा , महान दिखाने के लिए दूसरे को गलत व नंगा करने के पूरे घोड़े खोल देता है ।


अहंकार अनेक झगड़ों की जड़ है । अहंकार के नशे मे मनुष्य यह भूल जाता है कि प्रेम प्यार के अलावा सब बेकार है । खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाना है । फिर घमंड ,झगड़ा, लड़ाई, अंहकार क्यों ? किस लिए ?



अहंकार का एक रूप "जिद्द" है । कई बार मनुष्य अपनी बातों को गलत समझते हुए भी गलती मान‌ने को तैयार नही होता है । क्योंकि वह समझता है कि इस‌से उसके मान मे कमी होगी । मान अपमान की इस मिथ्या धारणा के आधार पर अपना सब कुछ गंवाने को तैयार हो जाता है । परन्तु अपनी जिद्द नहीं छोड़ता है । व्यक्ति के इसी झूठे अभियान के परिणाम स्वरूप परिवार तबाह हो जाते है । 


अच्छा होता मनुष्य अभिमान छोड़ श्रेष्ठ स्वमान धारण करता। आत्मा के स्वमान मे मनुष्य निन्दा, अपमान, हानि आदि की परिस्थितियों मे शान्त, शीतल, एवं आनंदमय रहता है । यह स्वमान उसकी वास्तविक शक्ति का सूचक है ।


अंहकारी का एक रूप अपनी महिमा सुन‌ने का चाव रखता है । अहंकारी मनुष्य अपनी सही आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि उसका कोई मित्र हित भाव मे भी किसी दुर्गुण को दूर करने के लिए कोई सुझाव देता है, तो उसे भी वह अपना अपमान मानता है । वह अपने कई कारण समझा कर अपनी बातों को सुंदर रूप मे पेश करने की कोशिश करता है । परन्तु अहंकार की छाया बुद्धि पर पड़ जाने से उसे यह भी नहीं सूझता कि दूसरों मे भी इतनी समझ तो है कि वह सब कुछ समझते है । 



अहंकारी मनुष्य को अपनी खुशामद और चापलूसी सुन‌ने की आदत पड़ जाती है । यदि कोई उसकी बात पर प्रश्न उठाता है तो उसे वह अपनी आँख का शहतीर मानता है ।
अतः अहंकार के अशुद्ध रूप को छोड़ कर इसे शुद्ध करने में ही मनुष्य का भला है । नम्रता को धारण करने से अहंकार स्वत: ही मिट जाता है ।


अहंकार एक ऐसी संग्रह वृत्ति है, जो विषधर के समान है। जो मनुष्य अहंकारी होता है, वह संसार में अपने आप को अत्यंत महत्वपूर्ण समझता है। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। अहंकारी अपने आप को दूसरे लोगों की तुलना में अधिक श्रेष्ठ समझता है। ऐसा व्यक्ति सदा यही इच्छा करता है कि लोग उसकी प्रशंसा करें तथा उसे अधिक सम्मान दें।...