सफरनामा : श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग - यात्रा

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से आखिरी है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग


दिल से इच्छा थी कि, भगवान शिव के घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग  के दर्शन करने है । और दर्शन करने के लिए चल दिए 14 जनवरी 2020 को मुंबई से औरंगाबाद । 🚉21:10


भगवान शिव की कृपा से सुबह 9:00 बजे "घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग " के दर्शन का अवसर मिला। इस समय भीड़ कम होने से भगवान शिव के चरणों में देर तक रहने सौभाग्य प्राप्त हुआ । यह सातवां ज्योतिर्लिंग दर्शन था। 



भगवान शिव के बारहवें ज्योतिर्लिंग के दर्शन 15.01.2020.^


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग :
महाराष्ट्र के औरंगाबाद से लगभग 30 किमी दूर  एक पहाड़ी क्षेत्र में घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर है। 
    घृष्णेश्वर मंदिर में तीन द्वार हैं एक महाद्वार और दो पक्षद्वार। गर्भगृह के ठीक सामने एक विशाल सभाग्रह है। 24 पत्थर के स्तंभों पर सभा मंड़प बनाया गया है. स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। मंडप के मध्य में कछुआ है और दिवार की कमान पर गणेशजी की मूर्ति है। सभा मंड़प में नंदी भगवान की मूर्ति है, जो शिवलिंग के ठीक सामने है। मुख्य मंदिर मनमोहक सुंदरता व भव्यता के बीच विराजमान है, श्री घृष्णेश्वर महादेव । मंदिर लाल रंग के पत्थरों से बना है, जिसका मुख्य द्वार छोटा है । 


कथा
देवगिरी पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे ।दोनों की कोई संतान नहीं थी। संतान पाने की इच्छा व पत्नी के कहने पर सुधर्मा ने पत्नी की बहिन घुश्मा से विवाह कर लिया। 
     जब घुश्मा को पुत्र हुआ तो सुदेहा को उससे जलन होने लगी। एक दिन सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र का वध कर उसके शव को  सरोवर में फेंक दिया ।  घुश्मा  अपने पुत्र की हत्या से विचलित नहीं हुई । वह रोज की तरह पूजा कर भगवान से अपने पुत्र को वापस पाने की कामना करने लगी। पूजा के बाद जब घुश्मा शिवलिंग को सरोवर में विसर्जित करने गई तो उसका पुत्र सरोवर के किनारे जीवित खड़ा था। अपने पुत्र की मृत्यु पर उसे बहन पर क्रोध नहीं आया। घुश्मा की इसी सरलता और भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। घुश्मा ने भगवान से अपनी बहन को माफ करने और हमेशा के लिए इसी स्थान पर रहने का वरदान मांगा। घुश्मा के कहने पर भगवान उसी स्थान पर घुश्मेश्वर लिंग के रूप में स्थित हो गए।


ड्रेस कोड : मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को शर्ट / कमीज एवं बनियान तथा बेल्ट उतारना पड़ता है ।
दर्शन का समय :
मंदिर रोज सुबह 5 :30 को खुलता है और रात 9 :30 को बंद होता है 
आरती का समय :
सुबह आरती 6 बजे तथा रात 8 बजे होती है।